रिश्ते अपने आप नहीं बन जाते, उन्हें बनाने में समय लगता है । रिश्ते ईष्र्या, स्वार्थ, अंहकार और रूखे व्यवहार की वजय से नहीं, बल्कि दयालुता, आपसी समझ और आत्मत्याग के आधार पर बनते है ।
रिश्तों को महत्व देकर उन्हें गंभीरता से लेना चाहिए, और एक बार रिश्ते बन जाएँ, तो उन्हें पौधे की तरह सींचना चाहिए । कोई भी पूर्ण नहीं होता । संपूर्णता की तलाश करने में निराशा ही हाथ लगती है ।
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