आज की गतिशील दुनिया मेँ मनुष्य भी मशीनोँ की तरह भाग रहा है । सफलता की मँजिलेँ पकड़ने के लिए हर व्यक्ति भाग रहा है ,हर व्यक्ति गतिशील है ।गति अच्छी होती रही है , किन्तु उसे उर्जा चाहिए होती है । गति मेँ जितना तीव्रता आती है या लाना चाहते हैँ ...तो उर्जा भी उसी अनुआआआत से चाहिए होती है ।यदि यह उर्जा नहीँ मिलती तो बिना पेट्रोल की गाड़ी की तरह हमारा शरीर भी रूक जाता हैँ ।
आ
इस धरा के धरातल से,
उस नभ के नभमंडल तक,
गगन में फैले तारो से,
फिज़ा में फैली बहारो तक,
गीता के संदेशो से,
कुरान के वर्णन तक,
अयोध्या में राम से,
मथुरा में घनश्याम तक,
तुम ही तुम हो बाबा,
मेरे साईं तुम ही तुम हो,
भिरनी के बेरों से,
मीरा के त्याग तक,
राधा के प्रेम से,
रुकमणि के श्रंगार तक,
जग के चरा-चर से,
प्रथ्वी की हल-चल तक,
कैलाश पर्वत से,
गंगा की कल-कल तक,
तुम ही तुम हो बाबा,
मेरे साईं तुम ही तुम हो,
अमरनाथ की कंदार से ,
गौतम की भूमि तक,
मस्जिद की अजान से,
गुरुग्रंथ की वाणी तक ,
दशो दिशाओं से,
समस्त कोणों तक,
हवा के वेग से,
सूर्य के तेज तक,
तुम ही तुम हो बाबा,
मेरे साईं तुम ही तुम हो,
चाँद की शीतलता से,
नक्षत्रो के मेल तक,
माँ की ममता से,
जीवन के अंत तक,
मनुष्य के मनं से,
संसार के अन्तकरण तक,
"मानव" की उत्पत्ति से,
"मानव" की जिज्ञासाओं तक,
तुम ही तुम हो बाबा,
मेरे साईं तुम ही तुम हो
सिर्फ तुम हो सिर्फ तुम हो,
मेरे साईं मेरे राम मेरे कान्हा तुम हो,
तुम ही तुम हो बाबा,
मेरे साईं तुम ही तुम हो......See More
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